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Monday, May 12, 2014

वही पुरानी धूप

जाते हुए मौसम की वही पुरानी धूप
डूबते हुए सूरज का वही पुराना टुकड़ा
घर की छत का बही पुराना कोना
हाथो में उठाये वही पुरानी क़िताब
मैं आज भी यही सोचता हूँ 
की क्या सब कुछ है वैसे का वैसे या फिर कुछ बदल गया है?
या फिर जाने दो, धुंदला सी याद है, इसे धुंदला ही रहने दो
वैसे भी अजनबी से इस शहर में कुछ चीज़ें धुंदली ही अच्छी लगती है...

© Neetu Bhatia