जाते हुए मौसम की वही पुरानी धूप
डूबते हुए सूरज का वही पुराना टुकड़ा
घर की छत का बही पुराना कोना
हाथो में उठाये वही पुरानी क़िताब
मैं आज भी यही सोचता हूँ
की क्या सब कुछ है वैसे का वैसे या फिर कुछ बदल गया है?
या फिर जाने दो, धुंदला सी याद है, इसे धुंदला ही रहने दो
वैसे भी अजनबी से इस शहर में कुछ चीज़ें धुंदली ही अच्छी लगती है...
© Neetu Bhatia